Ramadan 2023: आज से माह-ए-रमज़ान की शुरुआत हो चुकी है और इस्लाम धर्म के मानने वालों ने आज पहला रोज़ा रखा है। इस्लाम धर्म के पांच मूल स्तंभ है जिसमें पहला है कलमा, दूसरा नमाज़, तीसरा रोज़ा, चौथा ज़कात और पांचवा हज है। रोज़ा मुसलमानों  के लिए फर्ज़ हैं इसलिए माह-ए-रमज़ान में हर मुसलमान रोज़ा रखता है, लेकिन क्या आपको पता है कि जो लोग रोज़ा रखने की स्थिति में ना हों उन पर रोज़े या तो माफ होते हैं या फिर जो रोज़े किसी कारण वश छूट गए हैं उन्हें बाद में भी रखा जा सकता है।

नाबालिग पर रोज़े फर्ज़ नहीं हैं

छोटे बच्चों को रोज़े रखने की इजाज़त नहीं है। जब तक बच्चा बालिग नहीं हो जाता उस पर रोज़े फर्ज नहीं हैं। यदि बालिग होने के बाद कोई भी मुसलमान जानबूझकर रोज़ा छोड़ता है तो वह गुनहगार होगा।

मासिक धर्म के समय

महिलाएं मासिक धर्म के चलते रोज़े नहीं रख सकती हैं। लेकिन इस दौरान उनके जितने भी रोज़े छूटे हैं। उन्हें बाद में रोज़े रखने होंगे।

सफर के दौरान भी रोज़े रखने की मनाही है 

यदि कोई मुसलमान किसी सफर पर जा रहा है तो उसे भी रोज़े न रखने की छूट है। यदि उसका सफर आसान है तो वह रोज़े रख सकता है लेकिन सफर में रोज़ा रखना ज़रुरी नहीं है। वह अपने छूटे हुए रोज़े बाद में भी रख सकता है।

बीमार व्यक्ति को भी छूट है

यदि कोई बीमार है तो रोज़ा न रखने पर वह गुनहगार नहीं होगा। तंदरुस्त होने के बाद वह छूटे हुए रोज़े रख सकता है।

जिन लोगों का दिमागी संतुलन ठीक न हो

जो लोग दिमागी तौर पर कमज़ोर है या उनका दिमागी संतुलन ठीक नहीं है तो उन पर रोज़े फर्ज़ नहीं है।

गर्भवती महिलाएं

गर्भवती महिलाएं अगर इस हालत में हैं कि वह रोज़ा रख पाने में सक्षम नहीं हैं तो उनके लिए भी रोज़ा रखना ज़रुरी नहीं है।