GST से जुड़े नियमों में हाल ही में कुछ संशोधनों की घोषणा की गई है। इसका एक मात्र लक्ष्य है कि फर्जी बिलों के जरिए जीएसटी सिस्टम में होने वाली धोखाधड़ी पर रोक लगाई जा सके। चार्टर्ड अकाउंटेंट गौरव आर्य ने दैनिक जागरण से खास बातचीत की और बताया कि भारत में फेक बिलिंग की समस्या अधिक हो गई है और ये बढ़ती ही जा रही है। यही कारण है कि राजस्व संग्रह में कमी देखने को मिली है। केंद्र सरकार ने इसपर रोक लगाने के लिए कुछ केस में बिना किसी कारण बताओ नोटिस के जीएसटी रजिस्ट्रेशन को सस्पेंड करने का भी प्रावधान भी किया है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के उपाय से बिलों के फर्जीवाड़े के माध्यम से फ्रॉड करने वालों पर लगाम लगेगा।
आर्य ने बताया कि “अगर GSTR-1 में टैक्स को लेकर दिए गए विवरण और GSTR-3B में दिए गए आंकड़ों में अगर मिलान नहीं होता है तो इस तरह के कदम उठाए जा सकते हैं। साथ ही आपने जीएसटी रिटर्न ऐसे फाइल की है, जिसमें सरकार की किसी गड़बड़ी का अंदेशा होता है, तो जीएसटी रजिस्ट्रेशन सस्पेंड किया जा सकता है। इसके अलावा जिन असेसीज का टर्नओवर 50 लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें अनिवार्य रूप से एक फीसद का टैक्स जमा करना है। ऐसे टैक्सपेयर्स इनपुट टैक्स से अपनी कर देनदारी पूरी नहीं कर सकते हैं। इन तीनों मामलों में जीएसटी रजिस्ट्रेशन सस्पेंड हो सकता है।”
आर्य ने IRN को लेकर जानकारी दी कि “E-Invoicing 1 अक्टूबर से प्रभावी हुई है। 1 जनवरी से इसमें कुछ और चीजें प्रभावी हुई हैं। इनमें 100 करोड़ रुपये से अधिक के टर्नओवर वाले असेसीज पर भी इसे लागू किया गया है। अब बिना जीएसटी रजिस्ट्रेशन के कोई भी Invoice अवैध माना जाएगा।”
आर्य ने इनपुट टैक्स क्रेडिट से जुड़े नियमों में बारे में बताया कि 'सरकार ने यह प्रावधान किया है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट तभी मिलेगा, जब वो हमारे इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल में शो होगा। अगर सप्लायर ने रिटर्न फाइल नहीं किया, हमारे पोर्टल में शो नहीं हुआ तो उसका बेनिफिट हमें नहीं मिलेगा।'
आर्य ने बताया कि अगर आप नया बिजनेस शुरू करना चाह रहे हैं, तो आपको जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लिए लेनदेन के लिए जरूरी लिमिट पर ध्यान देना चाहिए। यह सीमा सर्विसेज के लिए 20 लाख रुपये जबकि गुड्स के लिए 40 लाख रुपये है। जीएसटी रजिस्ट्रेशन से पहले आपको अपने प्रदेश में लेनदेन की सीमा की जानकारी होनी चाहिए।